गर्मी के इस मौसम में कई बार तापमान इतना नीचे तक गिर जाता है कि पंखे बंद करने पड़ जाते हैं. पहाड़ी इलाकों में बर्फबारी हो रही है तो कर्नाटक में बारिश और मैदानी इलाकों में लू से लोगों का बुरा हाल है. जानते हैं एक्सपर्ट इस पर क्या कहते हैं.
उत्तर भारत के पहाड़ी इलाकों में बर्फबारी की खबरें तो आपने पढ़ी ही होंगी और टीवी पर देखी भी होंगी. उधर कर्नाटक में भारी बारिश के चलते जगह-जगह जलजमाव हो गया, जिससे लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा. बेंगलुरू के अंडरपास में पानी भरने के बाद गाड़ियां डूब गईं और वहां राहत व बचाव कार्य के लिए फायर ब्रिगेड को उतरना पड़ा. उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में एक हफ्ते पहले तक जहां कई बार ठंड लग रही थी, वहीं अब झुलसा देने वाली गर्मी पड़ रही है. मौसम इस तरह से गुमराह कर रहा है कि समझ ही नहीं आ रहा क्या किया जाए. मौसम के इस बवाल की वजह से लोग बीमार पड़ रहे हैं और अचानक ऐसे बदलावों की वजह से लोगों की जान पर बन आ रही है.
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मौसम विभाग की साइंटिस्ट सोमा सेन रॉय का कहना है कि हमने आज साउथ हरियाणा, दिल्ली, साउथ यूपी, नॉर्थ मध्य प्रदेश, झारखंड, बिहार और बंगाल के लिए हीट वेव यानी लू चलने की चेतावनी जारी की है. उन्होंने बताया कि कल यानी मंगलवार 23 मई को झारखंड में लू का अलर्ट जारी किया गया है, इसके अलावा कहीं भी लू का अलर्ट नहीं है. उन्होंने बताया कि एक और वेस्टर्न डिस्टर्बेंस आ रहा है, इसलिए कल से लू से राहत मिलने की बड़ी संभावना है.
आखिर मौसम में इतने बदलाव क्यों आ रहे हैं? इस संबंध में हमने मौसम विभाग के डॉ. राजेंद्र कुमार से बात की. उन्होंने कहा कि बेंगलुरू में हुई बारिश और हादसे को एक्स्ट्रीम वेदर कंडीशन से नहीं जोड़ा जा सकता है. उन्होंने बताया कि यह जल निकासी की समस्या की वजह से हुआ. यही नहीं उन्होंने मई की शुरुआत में दिल्ली-एनसीआर में ठंड जैसे हालात और अब अचानक गर्मी बढ़ने को भी एक्स्ट्रीम कंडीशन मानने से इनकार कर दिया. उनका कहना है कि ऐसा वेस्टर्न डिस्टर्बेंस की वजह से होता रहता है.
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हालांकि, डॉ. राजेंद्र कुमार ने बताया कि क्लाइमेट चेंज की वजह से एक्स्ट्रीम कंडीशन बन रही हैं. उन्होंने कहा, क्लाइमेट चेंज की वजह से गर्मियां और भी ज्यादा गर्म और सर्दियों में और भी ज्यादा ठंड पड़ने के मामले सामने आ रहे हैं.
मौसम के लिहाज से भारत दुनिया में पांचवां सबसे खतरनाक देश है. देश में एक्सट्रीम क्लाइमेट कंडीशन की घटनाएं और उनकी गंभीरता लगातार बढ़ रही है. क्लाइमेट चेंज हो रहा है और इसकी रफ्तार भी काफी तेज हो चुकी है. इस तेज रफ्तार से होने वाले क्लाइमेट चेंज की वजह से समस्याएं भी बढ़ेंगी ही.
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देश के 75 फीसद से अधिक जिलों में एक्सट्रीम क्लाइमेट इवेंट्स देखने को मिलते हैं. चिंताजनक बात यह है कि इन जिलों में 638 मिलियन (63.8 करोड़) से अधिक यानी देश की लगभग आधी जनसंख्या रहती है.
1970 से 2005 के बीच 35 वर्षों में मौसम से जुड़ी 250 गंभीर घटनाएं भारत में हुईं. जबकि 2005 से अब तक 310 से ज्यादा ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं, जिसमें प्रयावरण ने अपना रौद्र रूप दिखाया है. इसमें शीत लहर और लू भी शामिल हैं.
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साल 2005 के बाद कम के कम 55 जिलों में साल दर साल गंभीर बाढ़ जैसे हालात देखने को मिलते हैं. इस बाढ़ की वजह से 9.75 करोड़ लोग प्रभावित होते हैं. साल 2005 में सबसे ज्यादा 140 बाढ़ आईं. यह बाढ़ें देश के 69 जिलों में आईं. साल 2019 में यह रिकॉर्ड टूटा और 151 बाढ़ आईं.
साल 1970 से 2019 तक बाढ़ से जुड़ी भूस्खलन, भारी बारिश, ओलावृष्टि और बिजली गिरने व बादल फटने की घटनाओं में 20 गुना वृद्धि हुई. पिछले 15 वर्षों में 79 जिलों को साल दर साल गंभीर सूखे का सामना करना पड़ा है. इसकी वजह से हर साल 14 करोड़ लोग प्रभावित होते हैं. इस दौरान हर साल सूखे की चपेट में आने वाले जिलों की औसत 15 गुना बढ़ोतरी हुई.
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साल 2005 के बाद से 24 जिलों में हर साल भीषण साइक्लोन आए. सिर्फ पिछले एक दशक में ही 258 जिलों में साइक्लोन ने दस्तक दी है. जिन जिलों में सबसे ज्यादा साइक्लोन आते हैं उनमें पुरी, चेन्नई, नेल्लोर, उत्तरी 24 परगना, गंजम, कटक, ईस्ट गोदावरी और श्रीकाकुलम शामिल हैं.