साल 1980 की बात है. उस समय देश के प्रधानमंत्री थे चौधरी चरण सिंह. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की सरकार पर प्याज के दाम को काबू में रखने में नाकाम होने का आरोप लगाया था.
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प्याज. एक ऐसी सब्जी जिसने सरकारें बनाई भी और गिराई भी. शायद इसलिए मजाक में ही सही, लेकिन प्याज को ‘राजनीतिक सब्जी’ कहा जाता है. जब प्याज ने अपनी तेजी दिखाई तो अच्छे-अच्छे राजनेताओं को घुटने टेकने पड़े. एक जमाने में सत्ता पर राज करने वालीं इंदिरा गांधी को प्याज की माला पहनने पर मजबूर होना पड़ा. जहां प्याज ने शिला दीक्षित की सत्ता बचाई, वहीं दूसरी ओर दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं सुषमा स्वराज को सत्ता से हाथ धोना पड़ गया. आज बात प्याज और राजनीति की.
प्याज की कीमतों की वजह से कई बार तो तख्ता पलट तक हो गया
देश की राजधानी दिल्ली समेत ज्यादा शहरों में प्याज के दाम आसामान छून लगे हैं. दिल्ली में रिटेल में अच्छी क्वालिटी के प्याज का दाम 90 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया है. कल तक ये 80 रुपये किलो तक मिल रहा था. वहीं, थोक में प्याज 70 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है. प्याज की कीमत में उछाल की वजह कर्नाटक और महाराष्ट्र में बारिश में देरी को माना जा रहा है, जिसके कारण खरीफ की फसल की बुआई देर से हुई है और नया प्याज मंडी में आने में समय है. प्यास की कीमतों ने देश की सियासत पर अपना बड़ा असर डाला है. प्याज की कीमतों की वजह से कई बार तो तख्ता पलट तक हो गया.
जब इंदिरा गांधी को प्याज की माला पहनने पर मजबूर होना पड़ा
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इतिहास गवाह है कि जब कभी भी जनता को टेकेन फोर ग्रेटिड लिया गया है और सरकारें जन भावना के खिलाफ जाकर काम करती रही हैं, तब तब सत्तारूढ़ दलों को नुकसान उठाना पड़ा है.
देश ने वो दौर भी देखा है जब संपूर्ण विपक्ष एक सुर से इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल करने की कोशिश में लगा था, तो उस वक्त इंदिरा गांधी ने सिर्फ एक नारा दिया था, गरीबी हटाओ और उस एक नारे ने देश के राजनैतिक समीकरण को बदल दिया था और इंदिरा गांधी को दोबारा देश की सत्ता मिल गई थी. एक और दौर प्याज का राजनीति से रिश्ते का था.
साल 1980 की बात है. उस समय देश के प्रधानमंत्री थे चौधरी चरण सिंह. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की सरकार पर प्याज के दाम को काबू में रखने में नाकाम होने का आरोप लगाया था.
इंदिरा ने कहा था- “जिस सरकार का कीमत पर जोर नहीं, उसे देश चलाने का अधिकार नहीं.” और पूरे देश में हुई जनसभाओं में इंदिरा गांधी प्याज की माला पहनकर घूमी थीं. उस समय इंदिरा के सबसे करीबी माने जाने वाले सी.एम. स्टीफन भी प्याज की माला पहन संसद पहुंच थे. एक जमाने में स्टीफन केरल से कांग्रेस संसद सदस्य हुआ करते थे. जिसके बाद प्याज की बढ़ी कीमतों पर खूब चर्चा हुई. जनता पार्टी की सरकार बैकफुट पर आ गई. जनता पार्टी की सरकार में प्याज की बड़ी क़ीमतों को इंदिरा गांधी ने चुनावी मुद्दा बनाया और इसका उन्हें फायदा भी मिला. इंदिरा ने 1980 का लोकसभा चुनाव जीता. दोबारा सत्ता में आईं. अपनी नई सरकार में इंदिरा गांधी ने प्याज को राजनीति में एंट्री कराने वाले सी. एम. स्टीफन को संचार मंत्री का पद दियाा.
जब इंदिरा की सत्ता में वापसी हुई तो ‘वॉशिंगटन पोस्ट’ में लिखा गया- “प्याज ने इंदिरा गांधी को फिर से सत्ता दिलाई.”
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जब प्याज ने सुषमा स्वराज को सत्ता से बेदखल कर दिया
इसी फॉर्मूले को दिल्ली में शीला दीक्षित ने भी आगे चलकर अपनाया था, जब सुषमा स्वराज दिल्ली की मुख्यमंत्री थीं और प्याज की कीमतों में बढ़ोत्तरी हुई थी. कांग्रेस ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया और सुषमा सरकार को हार का सामना करना पड़ा.