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उत्तराखंड

World Meteorological Day: अति संवेदनशील उत्तराखंड में सटीक पूर्वानुमान की आवश्यकता, रोका जा सकता है 100 करोड़ से अधिक का नुकसान

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World Meteorological Day प्रदेश में तीन आधुनिक वेदर रडार सिस्टम स्थापित किए जा चुके हैं जो 50 से 100 किलोमीटर की परिधि तक के मौसम का तात्कालिक पूर्वानुमान काफी हद तक सटीक दे रहे हैं। प्रदेश में पूर्व चेतावनी प्रणाली (अर्ली वार्निंग सिस्टम) पर कार्य किया जा रहा है। देश में भूस्खलन के लिहाज से संवेदनशील 147 जिलों में रुद्रप्रयाग पहले और टिहरी दूसरे स्थान पर है।

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विजय जोशी, देहरादून। World Meteorological Day: आपदा के लिहाज से देश में सबसे अधिक संवेदनशील उत्तराखंड मौसम के सटीक तात्कालिक पूर्वानुमान की दिशा में आगे बढ़ा है।

प्रदेश में तीन आधुनिक वेदर रडार सिस्टम स्थापित किए जा चुके हैं, जो 50 से 100 किलोमीटर की परिधि तक के मौसम का तात्कालिक पूर्वानुमान काफी हद तक सटीक दे रहे हैं। प्रदेश में मुक्तेश्वर व सुरकंडा देवी मंदिर के पास समेत लैंसडौन में भी रडार सिस्टम स्थापित किया जा चुका है।

इसके अलावा मौसम पूर्वानुमान की महत्ता को देखते हुए प्रदेश में करीब 60 करोड़ रुपये के निवेश से पूर्व चेतावनी प्रणाली (अर्ली वार्निंग सिस्टम) पर कार्य किया जा रहा है। इससे प्रत्येक वर्ष आपदा से होने वाले सवा सौ करोड़ रुपये तक के नुकसान को कम किया जा सकता है। मौसम विज्ञान के क्षेत्र में प्रदेश में किए जा रहे प्रयासों के आगामी वर्षों में बेहतर परिणाम मिलने की उम्मीद है।

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उत्तराखंड में मौसम विज्ञान का महत्व

विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण उत्तराखंड में मौसम विज्ञान का महत्व बढ़ जाता है। वर्षा, बर्फबारी और ओलावृष्टि के साथ ही प्रदेश में अतिवृष्टि और आंधी भी गहरा प्रभाव डालते हैं। खासकर वर्षाकाल में पर्वतीय क्षेत्र गंभीर प्रकार की आपदाओं का दंश झेलते हैं। इससे प्रभाव को कम से कम करने के लिए मौसम विज्ञान की आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करना और मौसम उपकरणों की संख्या बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है।

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उत्तराखंड में वर्तमान में 83 वर्षा मापक व चार पूर्वानुमान स्टेशन स्थापित हैं। इसके अलावा तीन आधुनिक रडार भी स्थापित किए जा चुके हैं। वर्ष 2013 में आई केदारनाथ आपदा के बाद से मौसम विज्ञान से जुड़े संसाधन बढ़ाने पर जोर दिया गया और अब काफी हद तक तात्कालिक पूर्वानुमान सटीक होने लगा है।

मौसम विज्ञानी रोहित थपलियाल ने बताया कि उत्तरी हिमालयी राज्यों में कुल 10 रडार सिस्टम स्थापित किए गए हैं। जिनमें से तीन उत्तराखंड में हैं। इनमें पर्वतीय क्षेत्रों के लिए तीन घंटे का तात्कालिक पूर्वानुमान जारी किया जाता है।

उत्तराखंड में बेहद जरूरी अर्ली वार्निंग सिस्टम

जियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (जीआइएस) की ओर से उत्तराखंड में अर्ली वार्निंग सिस्टम तैयार करने पर जोर दिया गया है। जिसके तहत भारतीय मौसम विभाग के साथ मिलकर कार्य किया जा रहा है।

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रीजनल लैंडस्लाइड अर्ली वार्निंग सिस्टम के तहत उत्तराखंड में भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों के लिए 48 घंटे पहले चेतावनी से संबंधित बुलेटिन जारी किया जाएगा। प्रथम चरण में उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग, तमिलनाडु में नीलगिरी, बंगाल में दार्जिलिंग और कलिंगपोंग में इस पर कार्य किया जा रहा है। उम्मीद है कि इसी वर्ष नियमित रूप से अर्ली वार्निंग को लेकर बुलेटिन जारी किया जाए।

रुद्रप्रयाग और टिहरी देश में सबसे संवेदनशील

देश में भूस्खलन के लिहाज से संवेदनशील 147 जिलों में रुद्रप्रयाग पहले और टिहरी दूसरे स्थान पर है। यह बेहद चिंता की बात है कि उत्तराखंड के ज्यादातर पर्वतीय क्षेत्र अति संवेदनशील हैं। प्रदेश के जिलों की सूची में चमोली 19, उत्तरकाशी 21, पौड़ी 23, दून 29, बागेश्वर 50, चंपावत 65, नैनीताल 68, अल्मोड़ा 81 और पिथौरागढ 86वें स्थान पर है।

ड्रेनेज लाइन में जल प्रवाह का पूर्वानुमान भी मददगार

नेशनल सेंटर फार मीडियम रेंज वेदर फोरकास्टिंग की ओर से भी उत्तराखंड में संख्याओं के आधार पर मौसम के पूर्वानुमान जारी करने पर कार्य किया जा रहा है। 300 मीटर से 60 किलोमीटर परिधि के लिए स्थानीय एवं क्षेत्रीय स्तर के माडल स्थापित किए जा रहे हैं, जिससे एक से छह घंटे के अंतराल पर तात्कालिक पूर्वानुमान व्यक्त किया जा सकता है।

सेंटर वाटर कमिशन की ओर से भी उत्तराखंड के परिपेक्ष्य में हाइड्रो मेट्रोलाजिकल आब्जर्वेशन इनफ्लो फोरकास्ट, वाटर क्वालिटी आब्जर्वेशन रिपोर्ट का अनुश्रवण किया जाता है, जिससे राज्य में ड्रेनेज लाइन में जल प्रवाह के दृष्टिगत पूर्व अनुमान जारी किए जाते हैं।

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