Covid-19 Vaccine Updates: दुनिया भर में कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए सबसे प्रभावी हथियार वैक्सीन को माना जा रहा है लेकिन क्या इसकी डोज बच्चों को देना सुरक्षित है? इसे लेकर अमेरिकी स्टडी में अहम खुलासा हुआ है.
Covid-19 Vaccine Updates: दुनिया भर में कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए सबसे प्रभावी हथियार वैक्सीन को माना जा रहा है लेकिन क्या इसकी डोज बच्चों को देना सुरक्षित है? यह सवाल लगातार पूछा जा रहा है और अब इसे लेकर अमेरिकी स्टडी में अहम खुलासा हुआ है कि हां, यह सुरक्षित है. अमेरिकी रेगुलेटर्स द्वारा मंजूर की गई फाइजर वैक्सीन की पहली डोज पिछले महीने नवंबर की शुरुआत से अमेरिका में 5-11 वर्ष की उम्र के 50 लाख से अधिक बच्चों को दी गई है. इन बच्चों की निगरानी में अभी तक कोई दिक्कत सामने नहीं आई है यानी कि कोरोना वैक्सीन की डोज बच्चों के लिए भी सुरक्षित है. अमेरिका में 12-17 वर्ष के बच्चों को पहले ही वैक्सीन लगवाने की मंजूरी मिल चुकी है.
91% प्रभावी है बच्चों की वैक्सीन
5-11 वर्ष के बच्चों को फाइजर-बॉयोएनटेक की किड-साइज डोज दी गई जो 12 वर्ष या इससे अधिक उम्र के लोगों को लगने वाली वैक्सीन की तिहाई है. अमेरिकी एफडीए (फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) के मुताबिक कोरोना से जुड़े लक्षणों को रोकने में यह किड-साइज वैक्सीन 91 फीसदी प्रभावी है. 5-11 वर्ष के बच्चों में वायरस से लड़ने वाले एंटीबॉडी उतने ही मजबूत तैयार हुए जितने बड़े लोगों के शरीर में बने. बड़ों के समान ही कुछ बच्चों में बुखार या हल्के दर्द की समस्या सामने आई.
कुछ बच्चों में दिक्कतें आई सामने
सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन को कुछ रिपोर्ट मिली हैं जिसके मुताबिक 5-11 वर्ष के बच्चों को वैक्सीन के बाद हार्ट इंफ्लेमेशन की दिक्कत आई जिसमें से अधिकतर माइल्ड केस रहे. एमोरी यूनिवर्सिटी के पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजिस्ट डॉ मैथ्यू ओस्टर ने कहा कि कोरोना वायरस से हार्ट इंफ्लेमेशन की दिक्कत होती है और कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद जिन बच्चों को मल्टी-सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम हो जाता है, उन्हें भी यह दिक्कत होती है. महामारी के पहले डॉक्टर नियमित तौर पर बैक्टीरिया या वायरल संक्रमण या दवाइयों के चलते हार्ड इंफ्लेमेशन का इलाज करते रहे हैं लेकिन अधिकतर युवाओं में. ओस्टर के मुताबिक टेस्टोरस्टेरोन व प्यूबर्टी की यहां बड़ी भूमिका है और इसके चलते अधिकतर एक्सपर्ट्स मानते हैं कि छोटे बच्चों को कम डोज देने पर वैक्सीन से जुड़े खतरे कम होंगे.